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एक शरणागत शिष्य कहता है कि मुझे मेरे सद्गुरु ने ऐसे प्रेम रस में डुबो दिया है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पदार्थ उस रस के आगे फीके लगते हैं| कहाँ तक कहें वैकुण्ठ लोक का सुख भी स्वप्न में भी नहीं प्रिय लगता है बस एक चंचल श्याम सुन्दर एवं भोली - भाली राधारानी ही प्रिय लगती हैं | अब मैं ब्रह्माणी, रुद्राणी, लक्ष्मी आदि से भी दुर्लभ रास-रस को ब्रज की कुंजों में निरंतर पीती हूँ | ‘कृपालु’ कहते हैं कि ऐसे सद्गुरु के ऋण से मैं करोड़ों कल्प में भी उऋण नहीं हो सकता ||
A surrendered disciple says that my spiritual master has drowned me so much in the nectar of divine love that the four pursuits of life - Dharma (righteousness), Artha (wealth), Kama (desire), and Moksha (liberation), all seem pale in comparison to that love. Even the joys of the heavenly realm do not appeal to me, not even in dreams. Only the restless Shyam Sundar (Lord Krishna) and innocent Radha Rani are dear to me. Now, I continuously drink the divine nectar of Raas Leela, which is even rare for goddesses like Brahmani, Rudrani, and Lakshmi, in the groves of Vrindavan. ‘Kripalu’ says that I can never repay the debt of such a spiritual master, even in millions of epochs.
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